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शेर सिंह राणा: प्रतिशोध और परिवर्तन की कहानी

 

 शेर सिंह राणा

हमारे देश का एक वीर योद्धा और देश भक्त बेटा "पृथ्वी राज सिंह चौहान" जिसने एक - दो बार नहीं बल्कि कुल 23 बार मोहम्मद गौरी को जीवन दान दिया । उस महान राजपूत राजा की अस्थियों को अफगानिस्तान से भारत लाने वाले एक शेर की कहानी ।

कहते है की आज हमारा भारत विश्व गुरु बनने की ओर अग्रसहर है । हम विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था जल्द ही बनने जा रहे है । आज हम इतने ताकतवर हो चुके है की विश्व के सभी बड़े देश को हमसे कुछ न कुछ उम्मीदे है । आज हम जिन देशों को निस्वार्थ मदद करते है उन देशों मे अफगानिस्तान भी है । वही अफगानिस्तान जहां पर कभी मोहम्मद गौरी के मकबरे पर जाने से पहले पृथ्वी राज चौहान के मकबरे को चप्पल से मरने की रस्म हुआ करती थी। जाने कितने ही बार हमारे देश के कद्दावर नेता अफगानिस्तान का भ्रमण करते रहे। परंतु किसी ने भी ऐसी हिम्मत कभी नहीं दिखाई जैसा की भाई शेर सिंह राणा ने कर दिखाई ।

1999, जब समाजवादी पार्टी के टिकट से फूलन देवी जीत कर चम्बल के बीहड़ को छोड़ बतौर सांसद 54, अशोका रोड के सरकारी बंगले मे रहने के लिए आ जाती है । फूलन देवी की खुद की भी एक पार्टी थी "एकलव्य सेना पार्टी" के नाम से। चूंकि,  राजनीति मे उनकी शुरुआत अच्छी हो चुकी थी।

बात है, 25 जुलाई , 2001 की जब फूलन संसद के लिए निकल रहीं होती है तो बाहर शेर सिंह राणा नाम का युवक मिलता है और एकलव्य सेना पार्टी से खुद को बहुत प्रभावित बताता है तथा उस पार्टी के लिए काम करना चाहता है। इस बात से फूलन देवी काफी खुश होती है और उस युवक को खीर खिला कर पार्टी मे स्वागत करती है । फिर फूलन देवी संसद के मौनसून सत्र मे भाग लेने के लिए घर से निकल जाती है । दोपहर को लंच के वक्त फूलन देवी अपनी गाड़ी से खाना खाने के लिए 54, अशोक रोड अपने बंगले पर पहुँचती है । जैसे हीं फूलन देवी अपनी गाड़ी से उतर कर अंदर जाने को होती है तभी 3 नकाबपोश सामने लगे एक कार से निकाल कर पहले उनके गार्ड को घायल करने के इरादे से एक गोली मारते है फिर फूलन देवी को नजदीक से 5 गोलियां मारते है जिसमे से एक गोली उनके सीर के ठीक बीचोंबीच लगा था । गोली लगते ही फूलन देवी गिर पड़ती है और वो नकाबपोश वहाँ से तुरंत गाड़ी मे बैठ गोल डाकखाना की ओर भाग जाते है । बाद मे समाचार मिलता है की फूलन देवी की मृत्यु हो गई । 

एक सांसद की मृत्यु का मामला था इसलिए दिल्ली पुलिस पर भी बहुत दबाव था । परंतु दो दिन बित जाने के पश्चात भी पुलिस के हाथ बिल्कुल खाली थे। तभी अचानक से 27 जुलाई, 2001 को रुड़की का एक लड़का सभी पत्रकारों को बुलवाता है । पूरे पत्रकारों के बीच मे खुद को पूलन देवी का कातिल बताता है । इतना सुनते ही पत्रकारों के बीच हड़कंप सा मच गया । एक पत्रकारों ने उस लड़के से उसका नाम पूछा तो उस लड़के ने खुद को "शेर सिंह राणा" बताया । फिर शेर सिंह राणा ने देहरादून मे खुद को पुलिस के हवाले कर देता है । पुलिस शेर सिंह राणा को देहरादून से दिल्ली लाती है और उससे पूछताछ करती है । पूछताछ मे शेर सिंह राणा ने अपने गुनाह को कबूलता है और साथ ही ये भी कहता है की उसने पूलन देवी को मार बेहमई मे हुए 22 ठाकुरों की निर्मम हत्या का बदला लिया है । शेर सिंह राणा के इकबाले जुर्म के पश्चात पुलिस चार्ट शीट जमा कर शेर सिंह राणा को न्यायिक हिरासत मे ले लेती है, और इसे तिहाड़ मे रखती है । 


फिर अचानक से एक दिन जब शेर सिंह राणा अदालत मे पेशी के लिए पहुंचता है तो पत्रकारों को कहता है की "तिहाड़ की दीवार मुझे ज्यादा समय तक नहीं रोक पाएगी। मैं जल्द ही तिहाड़ से आजाद हो जाऊंगा।" 

17 फरवरी, 2004 की सुबह 6 बजकर 55 मिनट पर एक अरविन्द नाम का पुलिस वाला जेल मे पहुंचता है और एक सरकारी लेटर वहाँ पर देता है जिसमे शेर सिंह राणा को बैंक के साथ किये गए धोखा धड़ी के एक केश के मामले मे हरिद्वार की अदालत मे पेश होना था । इस लिए उस पुलिस वाले के साथ शेर सिंह राणा को भेजने का आदेश था । तिहाड़ के पुलिस से बिना कागजात की ठीक से जांच किये शेर सिंह राणा को उस पुलिस वाले के साथ सुबह 7 बजकर 5 मिनट पर भेज देते है । 

एक घंटे के बाद जब इस बात की खबर तिहाड़ जेल के आला ऑफिसरों को चली तो उन्होंने कागजात को हरिद्वार पुलिस से मिलान किया गया तो पता चला के ऐसा कोई आदेश दिया ही नहीं गया है और इस तरह से शेर सिंह राणा ने जैसा कहा था वैसा किया और बड़े ही इत्मीनान से वो तिहाड़ के चारदीवारी से भाग गया । इस घटना के बाद दिल्ली पुलिस की काफी बदनामी हुई । तिहाड़ जेल के कुछ अधिकारियों को बर्खास्त भी किया गया । फिर दिल्ली पुलिस ने रुड़की, हरिद्वार, देहरादून और भी कई ठिकानों पर शेर सिंह राणा के लिए छापेमारी भी की पर  शेर सिंह राणा अब उनके हाथ कहाँ आने वाला था । दिल्ली पुलिस ने शेर सिंह राणा पर 50000/- रुपये  का इनाम भी रखा । लेकिन शेर सिंह राणा कहीं नहीं मिला। फिर धीरे -धीरे वक्त की धूल शेर सिंह राणा की फ़ाइलों पर चढ़ता गया और सब उसे भूल गए । 

फिर 2005 के आखिर महीने मे अचानक से एक CD सामने आती है । जिसमे शेर सिंह राणा फिर से एक बार दिखता है उसमे वो कहता है की मैं जाली पासपोर्ट के जरिए भारत से नेपाल, फिर नेपाल से दुबई और फिर दुबई से अफगानिस्तान के एक शहर "गजनी" आया था । शेर सिंह राणा का कहना था की "महाराज पृथ्वी राज सिंह चौहान की असली समाधि अफगानिस्तान के गजनी शहर मे है और मैं इस समाधि की मिट्टी को ले जाने आया था ।" उसने बताया की उसने कहीं सुन था कि "महाराज पृथ्वी राज चौहान की समाधि मोहम्मद गौरी के पैरों के पास था और जो भी मोहम्मद गौरी की समाधि के दर्शन के लिए जाता तो वो पृथ्वी राज चौहान की समाधि पर जूतियाँ मारता और उस समाधि का अपमान करता " ये वहाँ की मान्यता थी और उसने उसी दिन ठान लिया था की वो गजनी जाएगा और वहाँ से पृथ्वी राज चौहान की मिट्टी को भारत लेकर आएगा। 

भारत से नेपाल, फिर नेपाल से दुबई और फिर दुबई से अफगानिस्तान ।  शेर सिंह राणा ने खुद को वहाँ एक टुरिस्ट बताया जो अफगानिस्तान घूमने आया था । सबसे पहले वो अफगानिस्तान के इकलौते पुरानी मंदिर मे पहुँचा । मंदिर बहुत ही जर - जर हालत मे था । फिर वे वहाँ पर स्थित एक गुरुद्वारे पर भी गए । वहाँ से वो पहुंचे कंधार के अहमद साह बाबा की मजार पर मजार को अफगनियों ने बहुत हीं बेहतरीन ढंग से संभाला हुआ था । फिर वे कंधार से देहक के लिए निकाल पड़े रास्ते मे खूबसूरत जगह भी मिले कुछ खतरनाक जगह भी थे जहां पर तलिबनियों का कब्जा था । फिर वे पहुंचे गार्डेज रोड वहाँ से गजनी जाने के लिए थोड़ा ही रास्ता बचा था । रास्ता बहुत ही खूबसूरत था चारों ओर बर्फ ही बर्फ परंतु रास्ता कच्चा था । 

शेर सिंह राणा अब आगे की योजना सोचने लगे "गजनी एक गांव है । पृथ्वी राज चौहान और मोहम्मद गौरी की समाधि को तो हम दिन मे नहीं निकाल सकते इससे गाँव वालों को शक हो जाएगा और हम पकड़े जा सकते है । शाम को समाधि निकाल भी लेंगे तो शाम को वहाँ से निकलना बहुत हीं कठिन और खतरनाक काम था । इसलिए उन्होंने आधी रात के बाद समाधि को निकालने की योजना बनाई । रात से पहले वे पृथ्वी राज चौहान की समाधि को देखने पहुंचे । वहाँ पर एक ग्रामीण से बात की उसने इशारे से मोहम्मद गौरी की समाधि को दिखाया जो की जिसको संगमरमर से बनाया हुआ मकबरा था जो एक जर - जर भवन के अंदर था और मोहम्मद गौरी के पैरों की ओर एक और समाधि थे जिसको पृथ्वी राज चौहान की समाधि बताया गया उस ग्रामीण के अनुसार जो भी मोहम्मद गौरी की समाधि के देखने के लिए जाता तो वो पृथ्वी राज चौहान की समाधि पर जूतियाँ मारता और तब अंदर जा कर मोहम्मद गौरी की समाधि को देखता ।

आधी रात के वक्त शेर सिंह राणा अपने दो साथियों के साथ उस समाधि पर आए और पृथ्वी राज चौहान की अस्थियों को उस समाधि से खोद कर निकालने लगे। काफी गहन अंधेरा था और उतना ही घना कुहासा भी था । ठंढ अपने चरम पर थी परंतु इतनी नहीं थी के शेर सिंह राणा के हिम्मत को जमा सके । करीब 2 घंटे की खुदाई के बाद आखिरकार उन्हे सफलता मिली और पृथ्वी राज चौहान की अस्थियों को निकाल कर उन्हे अपने घर लाने का काम किया। भारत वापस आने के बाद उन्होंने पृथ्वी राज चौहान की स-सम्मान समाधि का निर्माण कराया फिर खुद को पुलिस के हवाले कर दिया । 

शेर सिंह राणा ने बाकायदा अपने द्वारा किया गया वचन को फिर से निभाया और पृथ्वी राज चौहान की आखिरी निसानी को अपने देश लाने मे सफल हुआ । इस पूरे सफर का उन्होंने एक विडिओ भी बनाया है जो यूट्यूब पर आज भी मौजूद है । इसके साथ मैं आज की कहानी को विराम देता हूँ । मिलते हैं अगले ब्लॉग मे। तब तक के लिए।                                                                             *****🙏🙏🙏*****
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