अधूरी चीख
"एक ऐसा बदला, जिससे मौत भी कांप उठे"
रात के 11 बजे, दिल्ली-नोएडा के सेक्टर 17 की सुनसान सड़क। चारों ओर गहरा सन्नाटा था, बस कहीं-कहीं स्ट्रीट लाइट की फीकी रोशनी थी। ठंडी हवा चल रही थी, और हल्की-हल्की धुंध भी थी, जो माहौल को और डरावना बना रही थी।
राहुल, एक फूड डिलीवरी बॉय, अपने ऑर्डर को डिलीवर करने जा रहा था। उसे थोड़ी जल्दी थी, लेकिन जैसे ही उसने सड़क पर आगे बढ़ने के लिए स्पीड बढ़ाई, उसकी नज़र एक लड़की पर पड़ी।
लड़की सड़क के किनारे खड़ी थी, सफ़ेद रंग की ढीली-ढाली ड्रेस में। उसके लंबे बाल चेहरे पर झूल रहे थे, और उसकी आँखें किसी अजीब बेचैनी से भरी हुई थीं। उसने राहुल की ओर हाथ बढ़ाया, "भैया, क्या आप मुझे थोड़ी दूर तक छोड़ सकते हैं?"
राहुल पहले हिचकिचाया, फिर बोला, "कहाँ जाना है?"
लड़की ने धीमे और ठंडे स्वर में कहा, "बस...आगे... थोड़ी दूर..."
राहुल को कुछ अजीब लगा, लेकिन उसने सोचा कि इस वक़्त किसी को अकेले छोड़ना सही नहीं होगा। उसने उसे बाइक पर बैठने दिया और आगे बढ़ गया।
जैसे ही लड़की ने उसके पीछे बैठकर राहुल की कमर पकड़ी, राहुल को अजीब ठंडक महसूस हुई। ऐसा लगा मानो कोई बर्फीले हाथों से उसे पकड़ रहा हो।
कुछ ही दूर चलने के बाद, राहुल ने नोटिस किया कि सड़क पर बाकी गाड़ियाँ उसके पास आते ही हॉर्न बजाने लगती थीं।
एक कार वाला लगातार हॉर्न बजा रहा था और इशारों में कुछ बोलने की कोशिश कर रहा था, लेकिन उसकी आवाज़ राहुल तक नहीं पहुँच रही थी।
फिर अचानक, सड़क पर चल रहा एक ट्रक राहुल की बाइक के एकदम पास आया। ट्रक के अंदर बैठे सरदार जी ने उसे देख कर ज़ोर से चिल्लाया— "ओए! रुको! भगवान के वास्ते रुको!"
राहुल ने पीछे देखने की कोशिश की, लेकिन लड़की का चेहरा उसके कंधे के बहुत करीब आ चुका था... इतना करीब कि उसे लड़की की साँसें अपनी गर्दन पर महसूस हो रही थीं।
अचानक, सरदार जी ने ट्रक को ज़ोर से ब्रेक मारकर राहुल की बाइक के सामने रोक दिया। राहुल घबराया और ब्रेक लगाया।जैसे ही उसने पीछे मुड़कर लड़की से पूछा—"दीदी, आप ठीक हैं?"
वो झटके से कूदकर बाइक से दूर जा गिरी।
और... राहुल का दिल दहल गया!
लड़की की आँखों से खून बह रहा था। उसके होंठों से लाल तरल टपक रहा था। और उसके हाथ... नाखून पंजों जैसे लम्बे और नुकीले हो चुके थे।
सरदार जी भागते हुए आए, उनके हाथ में एक लोहे की रॉड थी।
"भाग! अभी के अभी भाग!" उन्होंने ज़ोर से चिल्लाया।
राहुल हिल भी नहीं पाया।
लड़की ने सरदार जी की तरफ़ देखा, और एक भयानक चीख मारी, इतनी ज़ोर की कि सड़क के किनारे खड़ी स्ट्रीट लाइट्स तक झपक गईं।
राहुल को कुछ समझ नहीं आया, उसकी आँखों के आगे अंधेरा छा गया और वह बेहोश होकर गिर पड़ा।
जब राहुल को होश आया, वह अस्पताल के बेड पर था। उसके कंधे से गहरा घाव रिस रहा था।
सरदार जी उसके पास बैठे थे। राहुल ने कमजोर आवाज़ में पूछा—
"क्या... क्या हुआ था मेरे साथ?"
सरदार जी ने गहरी सांस ली और बोले— "बेटा, तुम जिस लड़की को बाइक पर बिठाकर ले जा रहे थे… वो इंसान नहीं थी।"
राहुल ने सरदार जी से पूछा— "पर वो लड़की कौन थी?"
सरदार जी ने राहुल की आँखों में झाँका और कहा— "कई साल पहले, इसी सड़क पर एक लड़की का एक्सीडेंट हुआ था। वो सड़क पर तड़पती रही, किसी ने मदद नहीं की। अंत में उसने वहीं दम तोड़ दिया। तब से, वो हर रात किसी न किसी को रोकती है... लिफ्ट मांगती है… और फिर… धीरे-धीरे उसे खा जाती है!"
सरदार जी ने उसकी ओर झुकते हुए कहा— "तू ज़िंदा बच गया, पर..."
"वो अभी भी ज़िंदा है।"
राहुल के शरीर में एक अजीब सिहरन दौड़ गई। उसने धीरे-धीरे अस्पताल के कमरे का दरवाज़ा देखा... वह हल्के सफेद कपड़ों में एक परछाई देख सकता था...
और फिर... कमरा ठंडी हवा से भर गया...
राहुल अभी भी अस्पताल के बेड पर लेटा था, उसकी हालत कुछ बेहतर थी लेकिन दहशत उसके चेहरे से साफ झलक रही थी। सरदार जी उसके पास बैठे थे, लेकिन उनके चेहरे पर चिंता की लकीरें थी।"बेटा, तेरा तो नसीब अच्छा था... वरना..." सरदार जी ने गहरी सांस ली और चुप हो गए।
उसी वक्त, अस्पताल के पास वाली सड़क पर, एक और शिकार अपने अंजाम की ओर बढ़ रहा था।
"ओए! लड़कियों की कमी पड़ गई क्या जो अकेली सड़क पर घूम रही है?" ये था चिराग – एक 23 साल का बिंदास और लापरवाह लड़का। वो देर रात अपने दोस्तों के साथ पार्टी करके घर लौट रहा था, तभी उसने सड़क के किनारे एक लड़की को अकेले खड़े देखा। वही सफेद कपड़े, लंबे बाल, झुकी हुई गर्दन।
चिराग ने अपनी स्पोर्ट्स बाइक उसकी तरफ़ मोड़ी और स्टाइल मारते हुए बोला— "बेबी, इतनी रात को यहाँ? अकेली? चलो, मैं छोड़ देता हूँ..."
लड़की ने धीमी आवाज़ में कहा— "हाँ, छोड़ दो..."
चिराग हंसा, "अरे छोड़ तो देंगे, मगर कहाँ जाना है?"
लड़की ने धीरे से उसकी बाइक पर बैठते हुए कहा— "बस... थोड़ी दूर..."
उस लड़की को बैठा चिराग ने बाइक स्टार्ट की और आगे बढ़ा।
लेकिन कुछ ही मिनटों में उसे कुछ अजीब सी चीज़ें महसूस होने लगीं।
- उसके हाथ और पैरों में सुन्नपन आ रहा था।
- उसे ऐसा लग रहा था कि बाइक का वज़न बढ़ गया है।
- और सबसे अजीब बात—सड़क पर जो भी गाड़ियाँ आ रही थीं, उनके ड्राइवर उसे घूर रहे थे!
तभी पीछे से लड़की का हाथ धीरे-धीरे उसके कंधे पर आया... अकेला हाथ... बेहद ठंडा...
और फिर… कंधे में दर्द होने लगा!
चिराग ने एक झटके से रियरव्यू मिरर में देखा और उसका रक्त जम गया।
लड़की का चेहरा... गायब था!
बस खून से भरा एक काला गड्ढा उसकी जगह था!
"शिट!!!!"
उसने ज़ोर से बाइक रोकी और पीछे देखा—कोई नहीं था!
चिराग पूरी ताकत से भागता हुआ सीधा पुलिस स्टेशन पहुँचा। "सर! मैं मरने वाला था! वो लड़की... वो लड़की इंसान नहीं थी!"
ड्यूटी पर बैठे इंस्पेक्टर ठाकुर ने गहरी नजरों से उसे देखा और ठंडी आवाज़ में पूछा— "कैसी लड़की?"
चिराग ने सब कुछ बताया।
ठाकुर कुछ देर सोच में डूब गए। फिर उन्होंने कहा— "लगता है, तुम्हें और राहुल दोनों को एक ही आत्मा ने निशाना बनाया है। ये लड़की कौन है, ये हमें पता लगाना होगा।"
उन्होंने तुरंत पुराने केस फाइल्स निकलवाए। और वहाँ, एक 5 साल पुराना केस सामने आया— "संजीना मिश्रा – 2019 में एक भीषण एक्सीडेंट में मौत। उसके शरीर को सड़क किनारे फेंक दिया गया था, और किसी ने मदद नहीं की।"
इंस्पेक्टर ठाकुर ने गहरी सांस ली और अपने जूनियर से कहा— "हमें इस जगह पर जाना होगा, जहाँ ये घटनाएँ हो रही हैं।"
इंस्पेक्टर ठाकुर उस अस्पताल पर पहुंचे जहां से चिराग ने उस लड़की को लिफ्ट दिया था वहाँ उन्हे राहुल के बारे मे पता चला। राहुल से भी पूछताछ की गई दोनों केस मे समानता दिखी तो इंस्पेक्टर ठाकुर ने सड़क का पूरा CCTV फुटेज निकलवाया, और जब उन्होंने रात के फुटेज को ज़ूम करके देखा…तो…
उन्होंने देखा कि राहुल की बाइक पर कोई लड़की तो है ही नहीं! लेकिन फिर… उसका कंधा कैसे कट गया था? फुटेज में सिर्फ़ एक चीज़ स्पष्ट दिखाई दे रही थी— एक काला साया, जो अचानक हवा में विलीन हो गया था।
इंस्पेक्टर ठाकुर CCTV फुटेज को बार-बार देख रहे थे, लेकिन उन्हें कुछ भी समझ नहीं आ रहा था। राहुल की बाइक पर कोई लड़की नहीं थी, लेकिन फिर भी उसके कंधे में गहरे दाँतों के निशान थे! ठीक वैसे ही जैसे चिराग के कंधे पे पाए गए थे।
चिराग अब भी डरा हुआ था, लेकिन उसने इंस्पेक्टर से पूछा— "सर, अगर ये लड़की भूत थी… तो ये आई कहाँ से?" इंस्पेक्टर ठाकुर ने पुराने रिकॉर्ड्स खंगालने शुरू किए और उन्हें एक खौफनाक सच्चाई पता चली— संजीना मिश्रा की लाश कभी उसके परिवार को सौंपी नहीं गई थी। दरअसल, एक्सीडेंट के बाद, उसके शरीर सिनाख्त नहीं की जा सकी थी , और जब किसी ने उसकी पहचान नहीं की, तो उसे "लावारिस लाश" समझकर अस्पताल ने उसके कुछ अंग दान कर दिए।
संजीना का दिल, आँखें और किडनी तीन अलग-अलग मरीजों को ट्रांसप्लांट कर दिए गए थे। फिर उसके शरीर को जैसे तैसे कब्रिस्तान के पास के जंगल मे दफना दिया था। इंस्पेक्टर ठाकुर अब समझ चुके थे कि संजीना की आत्मा उन लोगों को अपना शिकार बना रही थी जो रात को अकेले सफर किया करते थे – क्योंकि रात के समय ही उसकी जान गई थी, और किसी ने उसकी मदद नहीं की थी।
राहुल और चिराग को अब तक यह अहसास हो चुका था कि यह सिर्फ़ एक डरावना हादसा नहीं था, बल्कि एक आत्मा का अधूरा बदला था।
"सर, अब हमें क्या करना चाहिए?" राहुल ने घबराते हुए पूछा।
ठाकुर ने गहरी सांस ली और बोले— "हमें उसकी आत्मा को मुक्ति दिलानी होगी… वरना ये मौतों का सिलसिला हमेशा चलता रहेगा!"
ठाकुर ने संजीना की कब्र की जगह पता किया और वहाँ खुद जाने का फैसला किया। पुलिस की टीम रात के 1:30 बजे का करीब उस जगह पहुँची जहां संजीना को दफनाया गया था, वहाँ ठंडी हवा चल रही थी। पूरे माहौल में एक अजीब सन्नाटा था, और चारों ओर कोहरे की मोटी चादर थी। एक पुराना मुंडेर, एक सूखा हुआ पीपल का पेड़, और ज़मीन पर अजीब-अजीब आकृतियाँ बनी हुई थीं।
वही पास मे एक अघोरी बैठा था। उनका नाम अघोरी बाबा कालेश्वर था। बाबा कालेश्वर ने आगाह करते हुए कहा की यहाँ जो दफन है वो बहुत गुस्से मे है और अपना बदला लेने के लिए भटक रही है। उन्होंने कहा कि संजीना के शरीर की बची हुई हड्डियों को निकालकर, पूरे विधि-विधान से उसका अंतिम संस्कार करना होगा। तभी उसकी आत्मा को यह से मुक्ति मिलेगी।पुलिस ने खुदाई शुरू करवाई… जैसे ही मिट्टी हटाई जाने लगी, चारों ओर अजीब सी हवाएँ चलने लगीं।
और फिर... एक कंकाल निकला – मगर उसका सिर गायब था!
तभी अचानक… चारों ओर हवा तेज़ हो गई, कब्र के पास रखे दीये खुद-ब-खुद बुझ गए, और पेड़ों की टहनियाँ तेज़ी से हिलने लगीं।
तभी… एक चीख गूंजी… इतनी भयानक कि सभी के रोंगटे खड़े हो गए! "मेरा बदला अभी अधूरा है!"
राहुल और चिराग ने आवाज की तरफ मूड कर देखा – वही लड़की... सफेद कपड़ों में, लंबे बालों के पीछे चेहरा छुपा हुआ… लेकिन इस बार… उसकी आँखों की जगह सिर्फ़ दो काले गड्ढे थे!
कब्रिस्तान में जब संजीना की हड्डियों को बाहर निकाला जा रहा था, तभी चारों ओर तेज़ हवा चलने लगी।
एक पुलिस कांस्टेबल ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाने लगा! "सर! सर! मेरी बॉडी पर कुछ अजीब हो रहा है... मुझसे कंट्रोल नहीं हो रहा!" सबने कांस्टेबल अशोक की तरफ़ देखा – उसकी आँखें पूरी तरह सफ़ेद हो गई थीं, उसकी नसें फूलने लगी थीं, और उसके होंठ धीरे-धीरे फटने लगे! अघोरी बाबा ने ज़ोर से कहा— "संजीना की आत्मा उस पुलिस वाले के शरीर में प्रवेश करने का प्रयाश कर रही है!" और फिर...
अशोक की ज़ुबान से संजीना की ही आवाज़ निकली— "मुझे चैन नहीं मिलेगा! जब तक मेरे अंगों को चुराने वाले सब मर नहीं जाते!"
ये सुनकर इंस्पेक्टर ठाकुर चौंक गए— "क्या?! अंग चुराने वाले?!"
बाबा बोले— "संजीना सिर्फ़ उन्हीं लोगों को मार रही थी जो रात को सफर कर रहे थे... लेकिन असली बदला अभी बाकी था। जिन लोगों को उसके शरीर के अंग मिले थे, उन्हें भी मरना होगा!" और फिर...
संजीना की आत्मा ने अशोक के शरीर पर पूरा कब्ज़ा कर लिया! अब वह सिर्फ़ एक भटकती आत्मा नहीं थी – बल्कि एक जीते-जागते इंसान के शरीर में समा गई थी! ठाकुर और उनकी टीम ने तुरंत उस अस्पताल मे पहुंची जिस अस्पताल मे संजीना का अंतिम समय मे इलाज चला था उस अस्पताल के 2019 के सारे रिकॉर्ड खंगाले। संजीना के दिल, आँखें और गुर्दे कुल तीन अलग-अलग लोगों में ट्रांसप्लांट किए गए थे।
लेकिन जैसे ही ठाकुर ने उन मरीजों की लिस्ट चेक की, उनके होश उड़ गए।
अब सिर्फ़ वही एक ही आदमी बचा था... राहुल सक्सेना जो जिंदा था।
ठाकुर और उनकी टीम हॉस्पिटल भागे – लेकिन जब वे वहाँ पहुँचे, तो ICU से ज़ोरदार चीख़ निकली! "बचाओ!!!"
जब पुलिस अंदर घुसी – राहुल सक्सेना मौत के करीब था। और उसके सिरहाने खड़ी थी... वही सफेद कपड़ों वाली लड़की! लेकिन अब... उसका चेहरा पूरी तरह साफ़ था!
ठाकुर ने अपनी बंदूक निकालकर कहा—"रुको! अगर तुम सच में इंसाफ़ चाहती हो तो हमें बताओ कि तुम्हारे साथ क्या हुआ था! "संजीना ने धीरे-धीरे ठाकुर की तरफ़ देखा। फिर उसने हॉस्पिटल की खिड़की से बाहर झांका और एक भयानक सच बताया— "मेरा एक्सीडेंट कोई हादसा नहीं था... मुझे मार दिया गया था!" "ये सब डॉक्टरों की साजिश थी! मेरी लाश को अस्पताल में ही खत्म कर दिया गया और मेरे अंगों को बेच दिया गया!"
राहुल सक्सेना की रहस्यमयी मौत के बाद, इंस्पेक्टर ठाकुर समझ गए थे कि ये कोई आम आत्मा की कहानी नहीं थी। इसके पीछे कोई बड़ा गुनाह छुपा था!
ठाकुर ने अपने असिस्टेंट सुबोध से कहा—"मुझे हॉस्पिटल के रिकॉर्ड्स दो, और वो डॉक्टर कौन था जिसने संजीना के अंगों की ट्रांसप्लांट करवाने की इजाजत दी थी?" सुबोध ने तुरंत रिपोर्ट निकाली— "सर, ये केस डॉ. वीरेंद्र सहाय के अंडर था… और वो अभी भी इसी हॉस्पिटल में हैं!" ठाकुर ने तुरंत हॉस्पिटल के डीन से मिलने का फैसला किया।
जब ठाकुर और उनकी टीम डॉ. वीरेंद्र से मिलने उनके ऑफिस पहुंचे, तो वहाँ एक अजीब माहौल था। कमरे में अंधेरा था, खिड़कियों पर काले पर्दे थे, और टेबल पर कई तांत्रिक किताबें पड़ी थीं! "आप लोग यहाँ क्यों आए हैं?" एक भारी आवाज़ गूंजी।
ठाकुर ने अपनी गन निकाली और बोले—"साफ-साफ बताओ, संजीना के साथ असल में क्या हुआ था?"
डॉ. वीरेंद्र ने हल्की हंसी भरी और बोले—"वो लड़की एक बलि थी… एक अधूरी बलि!"
डॉ. वीरेंद्र सिर्फ़ एक सर्जन नहीं, बल्कि ब्लैक मैजिक और शैतानी कर्मकांडों का एक्सपर्ट था।
उन्होंने बताया— "संजीना की आत्मा इस दुनिया में भटक रही है, क्योंकि उसकी मौत एक ख़ास काले अनुष्ठान के बीच में हुई थी।" "हमने उसके शरीर से कुछ अंग निकाले, लेकिन असली मकसद था – उसका दिल निकालकर एक तंत्र क्रिया पूरी करना!" ठाकुर और उनकी टीम सन्न रह गई! 😨मतलब, संजीना का एक्सीडेंट कोई हादसा नहीं था! बल्कि, डॉक्टरों ने उसे मारकर उसके शरीर को तांत्रिक बलि के लिए इस्तेमाल किया था! और अब... संजीना की आत्मा उन सभी को मार रही थी, जो इस साजिश का हिस्सा थे!
ठाकुर कुछ बोलते उससे पहले ही...हवा तेज़ चलने लगी, कमरे की लाइटें बुझ गईं, और हर तरफ़ भयानक आवाज़ें गूंजने लगीं! "तुम सब मरोगे!" संजीना की आत्मा काले धुएं की तरह कमरे में घुस आई और उसने डॉ. वीरेंद्र को जकड़ लिया! "नहीं! मुझे माफ कर दो!" डॉ. वीरेंद्र चिल्लाए। लेकिन संजीना की आत्मा ने उन्हें हवा में उठा दिया और ज़ोर से दीवार पर पटक दिया!
धड़ाम!!! डॉ. वीरेंद्र की गर्दन टूट चुकी थी! 💀
लेकिन... मरने से पहले, उन्होंने एक तांत्रिक मंत्र बोला और उनकी आँखों से काला खून बहने लगा।
डॉ. वीरेंद्र की लाश ज़मीन पर पड़ी थी। उनकी आँखों से काले खून की धार बह रही थी, और दीवारों पर अजीब तंत्र-मंत्र खुद गए थे।
लेकिन... संजीना की आत्मा अब भी वहीं थी! उसका बदला अभी अधूरा था!
"अभी भी कोई जिंदा है..." उसकी भूतिया आवाज़ गूंज उठी।
ठाकुर को अचानक याद आया—"अगर वीरेंद्र इस तांत्रिक खेल का मास्टरमाइंड था, तो बाकी अंगों की डीलिंग कौन करता था?"
ठाकुर की नज़र एक नाम पर पड़ी—डॉ. रमाकांत गुप्ता – हॉस्पिटल का डीन! 😨 "मतलब, ये आदमी भी इस काले जादू के खेल में शामिल था!" ठाकुर और उनकी टीम तुरंत हॉस्पिटल के सीसीटीवी रूम की तरफ़ दौड़े।
लेकिन... हॉस्पिटल की सारी लाइटें बुझ गईं! चारों तरफ़ भयंकर चीखों की आवाज़ें आने लगीं!
ठाकुर ने जैसे ही अपना टॉर्च जलाया, उन्होंने देखा—डॉ. रमाकांत गुप्ता हवा में उल्टा लटका हुआ था! "नहीं... मुझे छोड़ दो!!!" संजीना की आत्मा उनके ऊपर झुकी हुई थी, उसकी आँखों से लाल आग जैसी रोशनी निकल रही थी। "तुमने मेरे शरीर को बेचा... अब मैं तुम्हारी रूह छीन लूंगी!"और फिर... संजीना की आत्मा ने डीन के शरीर के अंदर हाथ डाल दिया और उसका दिल बाहर खींच लिया!!! डीन रमाकांत की दर्दनाक चीख से पूरा हॉस्पिटल कांप उठा!
धड़ाम!!! उनका शरीर ज़मीन पर गिरा... और धुएं में बदलकर जलने लगा! अब... सभी गुनहगार मर चुके थे।
ठाकुर और उनकी टीम सामने खड़े कांप रहे थे। संजीना की आत्मा अब धीरे-धीरे हल्की होने लगी। उसकी आँखों में अब गुस्से की जगह शांति थी। "अब मेरा बदला पूरा हो चुका है..."
और फिर... संजीना की आत्मा धीरे-धीरे सफ़ेद रोशनी में बदलकर गायब हो गई। ठाकुर ने चैन की सांस ली और अपनी टीम के साथ हॉस्पिटल से बाहर निकले।
लेकिन... जैसे ही वह अपनी गाड़ी में बैठे और शीशे में देखा... पीछे वाली सीट पर... कोई बैठा हुआ था! धड़ाम!!! गाड़ी के शीशे में एक आखिरी भयानक चीख गूंजी... और स्क्रीन काली हो गई।
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