दुर्लभ कश्यप
दुर्लभ कश्यप की कहानी | उज्जैन का 20 साल का गैंगस्टर | सोशल मीडिया की ताकत | सोशल मीडिया ने एक बड़ा गैंगस्टर बना दिया | फेस्बूक ने हीरो बना दिया |
टेक्नॉलजी की इस दुनिया मे सोशल मीडिया ने अपना एक अलग ही मुकाम हासिल किया है। आज पूरी दुनिया के लोग खासकर युवक सोशल मीडिया से जुड़े हुए है। आज सोशल मीडिया की वजह से पूरी दुनिया ही बदल चुकी है। आज कल एक चलन सा चल पड़ा है कि जब किसी भी अपराधी को अपना प्रचार करना होता है, खुद को बड़ा और खतरनाक बटन होता है, आम लोगों के बीच मे अपने नाम का डर बनाना होता है तो वे सोशल मीडिया जैसे - फेसबूक, ट्वीटर, इंस्टाग्राम जैसे प्लेटफॉर्म का सहारा लेता है। आज के समय मे सोशल मीडिया इतना ताकतवर है कि अगर वो चाहे तो किसी को भी ज़ीरो से हीरो बना दे और चाहे तो विलन, खलनायक या अपराधी बना दे। ये कहानी एक ऐसे ही लड़के की है जिसे सोशल मीडिया ने एक बड़ा गैंगस्टर बना दिया।
ये कहानी है मध्यप्रदेश के उज्जैन शहर के एक लड़के की जिसने महज 19 साल 11 महीने और 29 दिन की उम्र मे ही गुनाह कि इस दुनिया मे न सिर्फ अपना नाम बनाया बल्कि अपने अंजाम को भी पा लेता है। उस लड़के कि पहचान उसका पहनावा और उसका हुलिया बना जिसमे माथे पर लाल तिलक, आँखों मे काजल, कंधे पर सफेद गमछा, लंबे बाल इत्यादि था, और यही पहचान इसके गैंग ने भी अपनाई एक ड्रेस कोड कि तरह। सारे लोग लगभग एक ही तरह कि पोशाक मे रहते थे।
मध्य प्रदेश के महाकाल की धरती उज्जैन मे एक व्यवसायी रहते है जिनका नाम था "रजनीश कश्यप" उनकी पत्नी एक स्कूल मास्टर थी। उनके घर मे धन - धान्य की कोई कमी न थी बस कमी थी तो एक औलाद कि जो 8 नवंबर 2000 को पूरी हो गई जब उनके घर मे एक लड़के का जन्म हुआ। रजनीश कश्यप और उनकी पत्नी बहुत खुश थी। चूंकि बहुत मन्नतों के बाद उनके घर औलाद ने जन्म लिया था इसलिए उन्होंने उस बच्चे का नाम रखा "दुर्लभ .... दुर्लभ रजनीश कश्यप" और बाद मे उसे दुर्लभ कश्यप के नाम से जाना गया।
2016 मे जब उसकी उम्र 16 साल कि हुई तब तक उसने अपने पांव जुर्म की दुनिया मे दाखिल कर चुका था। लोगों को डरना - धमकाना, मारपीट करना, लड़ाई झगड़े करना आदि। फिर 2017 आते आते उसने अपने स्कूल के साथियों के साथ मिल कर एक गैंग तैयार किया। इसके बाद मारपीट करना, गाड़ियों को लूटना, लोगों को धमकाना, वशूली करना जैसे काम शरू कर दिए। धीरे - धीरे इनका प्रभाव उज्जैन मे बढ़ाने लगा और गैंग मे लोग भी जुडने लगे।
बात 2018 कि है जब दुर्लभ कश्यप ने पहली बार अपने फेस्बूक आई० डी० से एक बल्क मेसेज भेजता है कि "अगर किसी को कोई परेशानी हो, या किसी को कोई गुंडा-बदमास या कोई गैंगस्टर डराता - धमकाता है, या किसी झगड़े या विवाद का निपटारा करना चाहता हो तो वो आकार मुझे संपर्क करे।" इस मेसेज के बाद वो रुकता नहीं है बल्कि इस तरह के और भी कई मेसेज अपने फेस्बूक पर डालता है जिसमे वो अपने बारे मे और अपने गैंग के बारे मे भी बताता है। एक तरह से वो खुद का और गैंग का प्रचार - प्रसार कर रहा होता है फेस्बूक के जरिए। इस तरह का विज्ञापन अपने आप मे ही देश का पहला ऐसा मामला था जिसमे अपराधी खुद को दुनिया के सामने लाने के लिए फेस्बूक, इंस्टाग्राम, फेस्बूक मेसेन्जर का सहारा ले रहा था। फेस्बूक के इस तरह के प्रचार से दुर्लभ कश्यप का नाम इंदौर, उज्जैन के साथ - साथ पूरे मध्यप्रदेश मे बड़ा होने लगा। इसकी गैंग को ज्यादातर नाबालिक लड़के जिनकी उम्र 14 से 17 की होती थी वो फॉलो और जॉइन कर रहे थे। यह तक की काफी बच्चे तो मध्यप्रदेश के कई शहरों से उज्जैन सिर्फ दुर्लभ कश्यप कि गैंग को जॉइन करने के लिए आ रहे थे। इस व्यक्त तक इस गैंग मे करीब 100-150 से भी कई ज्यादा नाबालिक लड़के थे और इनके गैंग की पहचान उनका वही ड्रेस कोड बना। दुर्लभ अपने पूरे गैंग के साथ समय - समय पर फोटो शूट करता और उस फोटो को बड़े शान से सोशल मीडिया पर पोस्ट करता "दीस इस दुर्लभ कश्यप गैंग"।
फिर 2020 का वो मार्च महीने का दौर भी आया जब कोरोना ने पूरी दुनिया मे आतंक मचा रखा था। उसी दौरान दुरलब कश्यप को बेल पर रिहा कर दिया गया। न चाहते हुए भी दुर्लभ कश्यप बाहर आया। पहले तो वो इंदौर मे कुछ दिन रहता है फिर अपनी माँ के पास उज्जैन चला जाता है। उज्जैन मे रहते हुए उसने अपना पहले वाला रूटीन फिर से शरू कर दिया नशा करना, देर रात तक घर के बाहर रहना, पार्टी करना आदि।
8 सितंबर 2020 की रात को दुर्लभ कश्यप और उसकी माँ घर पर थे । उस दिन उसकी माँ ने दाल - बाटी बनाई थी। दुर्लभ को दाल - बाटी काफी पसंद थी। इतने मे उसके कुछ दोस्तों ने नीचे से आवाज लगाई । तो दुरलब ने थोड़ी देर मे आने का इशारा किया । फिर माँ को खाना लगाने को बोला फिर बड़े ही चाव से उसने दाल - बाटी खाई और माँ को बोल कि "माँ मैं आता हूँ थोड़ी देर मे नीचे से एक चक्कर लगा के।" और वो नीचे अपने दोस्तों के पास चला जाता है । फिर वहाँ से अपने घर के पास कि एक चाय की टपरी पर चल जाता है और अपने दोस्तों से बातें करने लगता है ।
रात के 1.30 बज रहा था दुर्लभ कश्यप और उसके 4 दोस्त उस चाय की दुकान पर चाय पी रहे थे । कोरोना का समय था सड़क एकदम सुनसान थी। तभी अचानक से उस दुकान पर उसका एक पुराना शहनवाज नाम का दुश्मन भी आ जाता है । उस समय शहनवाज के साथ करीब 12 लोग थे और दुर्लभ के साथ सिर्फ 4 लोग थे । शहनवाज भी अपने साथियों के साथ चाय पीने वही पर बैठ गया । फिर पुरानी किसी बात को लेकर दोनों मे कहा सुनी होने लगी। इतने मे शहनवाज के साथियों ने चाकू से दुर्लभ और असके साथियों पर हमला कर दिया बचाव मे दुर्लभ मे अपने बंदूक से गोली चला दी। गोली शहनवाज के कंधे को लगती है। गोली लगते देख शहनवाज के सभी साथियों ने दुर्लभ के ऊपर एक साथ हमला कर दिया। दुर्लभ के साथी जैसे - तैसे अपनी जान बच कर वहाँ से भाग निकले लेकिन शहनवाज और साथियों के हत्थे अकेला दुर्लभ कश्यप लग गया। करीब 34 चाकू के वार दुर्लभ कश्यप पर हुए और वहीं पर दुर्लभ कश्यप कि मौत हो जाती है।
पुलिस की पूछ-ताछ मे चसमदीद के द्वारा पता चला कि "जिस चाय कि दुकान पे वो रोज चाय पीते थे उस दुकान वाले ने शहनवाज गैंग से कहा था कि इसे जिंदा मत छोड़ना नहीं तो ये हम मे से किसी को भी जिंदा नहीं छोड़ेगा।" फिर पुलिस और छानबीन करती है जिसमे दोनों तरफ के लोगों को हिरासत मे लिया जाता है । केश मे शहनवाज गैंग पर मर्डर का चार्ज लगता है जबकि मरणोपरांत भी अटेम्प्ट टू मर्डर का चार्ज दुर्लभ कश्यप पर भी लगता है चुकी उसने भी शहनवाज गैंग पर गोली चली थी।
दुर्लभ कश्यप के मौत के करीब 7 महीने के बाद बेटे कि मौत के सदमे मे दुर्लभ कश्यप की माँ कि भी मौत हो जाती है । कुछ दिनों के बाद ही शहनवाज गैंग का एक साथी जेल की छत से कूद कर आत्महत्या कर लेता है। बाँकी लोग अभी भी जेल मे है।
दुर्लभ कश्यप के मौत के बाद उसके पिता ने एक बड़ा ही मार्मिक बयान दिया जिसमे उन्होंने कहा कि "जिस रास्ते पर मेरा बेटा चला मैं कभी नहीं चाहूँगा के किसी और का बेटा भी उस रास्ते पर जाए क्यूंकी उस रास्ते का अंतिम मंजिल मौत है सिर्फ मौत" साथ मे सोशल मीडिया के लिए भी एक मेसेज दिया कि "लोग इस हिरोगीरी के चक्कर मे नया आवे क्युकी ये बस एक दिखावा है एक छलावा है इसकी असलियत कुछ और ही है ।" और फिर वो फुट - फुट कर रोने लगे।
इसके साथ मैं अपनी इस कहानी को यही पर समाप्त करता हूँ । सोशल मीडिया की दुनिया "दूर से सुनाई देने वाला वो ढोल है जिसके पास आते ही लोग अपनी कानों को बंद करने लग जाते है।" ये बात हमे समझना होगा की सोशल मीडिया बस एक मनोरंजन और दूर के लोगों से जुड़े रहने का एक साधन मात्र है। इसकी चका-चौंध दुनिया को देख हमेशा उसके पीछे के काले अंधेरे को भी देखने का प्रयाश करे। आगे मिलते है अपने नए ब्लॉग के साथ तब तक के लिए "जय महाकाल"।
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