इजराइल की महागाथा

इजराइल और मुस्लिम देशों मे टकराव क्यूँ है | इसराइल विवाद कितना पुराना है | फिलिस्टाइन - इसराइल मे विवाद क्या है | मुस्लिम क्यूँ यहूदियों को खत्म करना चाहते है |
इजराइल और मुस्लिम देशों मे टकराव की स्थिति क्यूँ बनी रहती है। आखिर इतिहास के पन्नों मे ऐसा कौन सा राज दफन है जिसने मुस्लिमों को यहूदियों का जानी दुश्मन बना दिया है ? ऐसा क्या हुआ था इतिहास मे जिसकी वजह से मुस्लिमों की नजर मे यहूदी हमेशा खटकते रहते है ? आज इतिहास के पन्नों से आप लोगों के लिए कुछ घटनाओ को उजागर करूंगा जिससे की आप इस विवाद को भली भांति समझ पायेंगे।
सही मायनों मे देखा जाए तो ये विवाद कोई 50-100 साल पहले का नहीं है । असल मे ये विवाद 1400 साल पुराना है । इससे पहले की मैं आप लोगों को आगे की कहानी बताऊँ। मैं इजराइल मे हुए शनिवार उस घटना के लिए अपनी संवेदना व्यक्त करता हूँ । अब आते है अपनी कहानी पर । करीब 3000 साल पहले जब इस्लाम - ईसाई - यहूदियों के एक पैगंबर हुआ करते थे जिनको ईसाई और यहूदी पैगंबर अब्राहम और मुस्लिम नबी इब्राहीम कहते थे। पैगंबर अब्राहम की पत्नी का नाम था बीबी साराह। बीबी सराह पैगंबर अब्राहम को संतान का सुख नहीं दे पा रही थी, इसलिए पैगंबर अब्राहम ने संतान सुख की प्राप्ति हेतु अपनी पत्नी से दुशरी शादी करने की इजाजत मांगी। इस पर बीबी सराह ने पैगंबर अब्राहम से कहा की "चूंकि मैं आप को किसी तरह से भी संतान का सुख नहीं दे पाई इसलिए आप बीबी हाज़रा से शादी कर सकते है। बीबी सराह की इस बात को पैगंबर अब्राहम ने मान लिया और बीबी हाज़रा से उन्होंने शादी कर ली।
कुछ वक्त बाद बीबी हाज़रा ने एक संतान को जन्म दिया जिसका नाम इस्माइल रखा गया । जो आगे चल कर पैगंबर इस्माइल या नबी इस्माइल अल इस्लाम के नाम से जाने गए। पैगंबर इस्माइल के जन्म के कुछ दिनों के बाद ही बीबी साराह ने भी एक संतान को जन्म दिया जिसको ईसाई और यहूदी ने पैगंबर आइजेक बोला और मुस्लिम ने ईशाक अल इस्लाम बोला। ईसाई और यहूदियों ने आइजेक को अपना पैगंबर माना।
उधर बीबी साराह को संतान होने के पश्चात अपने पति पैगंबर अब्राहम के सामने एक शर्त रखती है की "वो और उनको संतान पैगंबर अब्राहम के साथ तभी रहेंगी जब वे बीबी हाज़रा और उनकी संतान पैगंबर इस्माइल को खुद से दूर न कर दे ।" आगे चल कर ईसाई और यहूदियों ने बीबी साराह से जन्मे संतान के वंशजों को ही अपना पैगंबर माना जिसमे आगे चल पैगंबर मोजिज आए जिसको मुस्लिम ने मूषा अले इस्लाम बोला, पैगंबर ऐरोन आए जिसको मुस्लिम ने हारून अले इस्लाम बोला, पैगंबर डेविड आए जिसको मुस्लिम ने दाऊद अल इस्लाम बोला फिर पैगंबर सोलेमन आए जिसको इस्लाम ने सुलेमान अले इस्लाम बोला। ये सारे वंशज थे बीबी साराह से हुए संतान पैगंबर आइजेक के।
परंतु, मुसलमानों ने अपना पैगंबर माना पैगंबर अब्राहम की दुशरी पत्नी बीबी हाज़रा के संतान पैगंबर इस्माइल को । लेकिन कुरान शरीफ के अनुसार मुसलमानों ने पैगंबर अब्राहम की पहली पत्नी बीबी साराह से हुए संतान पैगंबर आइजेक और उनके वंशजों को भी अपना पैगंबर माना लेकिन ईसाई और यहूदियों ने बीबी हाज़रा से हुए संतान पैगंबर इस्माइल को अपना पैगंबर मनाने से साफ तौर से इनकार कर दिया। उनका तर्क ये था की, पैगंबर इस्माइल के बाद उनके वंश मे कोई भी पैगंबर नही हुए । फिर 6 ठी शताब्दी मे पैगंबर इस्माइल के वंशजों मे ही जन्म हुआ जिसको ईसाई और यहूदी ने पैगंबर मोहम्मद कहा और मुसलमानों ने उनको नबी हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम कहा।
शुरुआत मे वो मुस्लिम जिन्होंने नबी हजरत मुहम्मद को अपना आखरी नबी मान लिया उन्होंने इस बात का भी का भी बहुत प्रयाश किया की नबी हजरत मुहम्मद को ईसाई और यहूदी भी अपना आखिरी पैगंबर मान लें । लेकिन नबी हजरत मुहम्मद को ईसाई और यहूदी अपना पैगंबर मनाने के तैयार नही हुए । ईसाई और यहूदियों ने नबी हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को एक बहरूपिया और झूठा कहा। टकराव का ये भी एक कारण माना जाता है । जबकि यहूदियों और मुस्लिम के बीच एक ही पैगंबर के दो पत्नियों से हुए संतानों के दो अलग - अलग वंशज को अपना नबी या अपना पैगंबर मनाने के बावजूद इनके बीच की दूरियाँ बढ़ती चली गयी।
जब नबी हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मक्का को त्याग कर मदीना पहुचे तब मुसलमानों के द्वारा ये प्रयाश किया गया की वहाँ रह रहे यहूदी उनको अपना आखिरी पैगंबर मान लें और पैगंबर अब्राहम की दुशरी पत्नी बीबी हाज़रा के संतान पैगंबर इस्माइल के वंशज के तौर पर ही मान ले। लेकिन मदीना मे रह रहे यहूदियों ने भी इस बात को मनाने से इनकार कर दिया।
कुछ इस्लामिक किताबों की माने तो जब नबी हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अपने 20 नुमाइंदों के साथ मदीना पहुंचे तो वे सजदा भी जेरूसलम की ओर ही किया करते थे और 5 के बजे 3 नमजे ही पढ़ा करते थे। लेकिन जब मुसलमानों को इस बात का यकीन हो गया की यहूदी किसी भी कीमत पर अपना पैगंबर मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को नही मनाने वाले तब उन्होंने सजदा जेरूसलम की तरफ न कर कबेशरीफ़ मक्का की तरफ करने लगे।
यहाँ से यहूदी और मुसलमानों के बीच की लड़ाई की नीव पड़ी। फिर दुशरा बड़ा कारण बना जेरूसलम का टेम्पल माउंट मे स्थित "अल अक्सा मस्जिद" जिसने यहूदी और मुसलमानों के बीच मे बढ़ती रंजिश की आग मे घी का काम किया। इसमे कहानी है की एक रात पैगंबर अब्राहम को एक ख्वाब आता है उसके सुबह वो अपने सबसे प्यारे बेटे इस्माइल को कुर्बानी के लिए लेकर जाते है जिसमे बच्चे की आँखों पर पट्टी बंधी होती है और वो बच्चा एक जानवर के बच्चे से बदल जाता है। लेकिन कुरान शरीफ मे कहीं भी पैगंबर इस्माइल का नाम नही है उसमे बस ये कहा गया है की "पैगंबर अब्राहम को एक ख्वाब आता है की तुम अपनी सबसे प्यारी चीज को कुर्बान कर दो और वो अपने सबसे प्यारे बेटे को कुर्बान करने के लिए चले जाते है।" इसपर मुस्लिमों का कहना था की "हजरत अब्राहम जिस बच्चे को कुर्बान करने के लिए ले कर गए थे वो बीबी हाज़रा की संतान इस्माइल थे ।" जबकि यहूदियों का कहना है की "पैगंबर अब्राहम जिस बच्चे को कुर्बान करने के लिए ले कर गए थे वो बीबी साराह की संतान पैगंबर आइजेक थे"।
मुसलमानों का कहना है की "हजरत अब्राहम ने अपने सबसे प्यारी चीज जो की उनकी और उनकी दुशरी पत्नी हाज़रा का बेटा हजरत इस्माइल को अरफात के पहाड़ी की एक गुफा मे कुर्बान करने के लिए ले कर गए थे।" जबकि ईसाई और यहूदियों का तर्क है की "पैगंबर अब्राहम ने अपने सबसे प्यारी चीज जो की उनकी और उनकी पहली पत्नी साराह के बेटे पैगंबर आइजेक थे को जेरूसलम की सबसे ऊंची पहाड़ी के ऊपर कुर्बान करने के लिए ले गए थे और कुर्बान करने के लिए जिस पत्थर पर पैगंबर आइजेक की आँखों पर पट्टी बांध कर लेटाया गया और फिर वो किसी जानवर से बदल गए । इसलिए वो जगह और वो पत्थर यहूदियों के लिए बहुत ही पवित्र और पूजनीय जगह होगी।"
बहस तब शरू होती है जब मुस्लिम ये कहते है की जब हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अपनी आसमानी यात्रा पर निकले और मदीने से जेरूसलम पहुंचे फिर वे जेरूसलम से सातों आसमानों के सफर पर जाने के लिए उसी पत्थर से आसमान की तरफ उठे और ईसाई और यहूदियों पैगंबर आइजेक को कुर्बानी के लिए इसी पत्थर पर लेटाया गया था मानते है। और फिर यही से यहूदी और मुसलमानों के बीच असल झगड़ा शरू होता है। मुसलमानों का कहना था की ये जगह हमारे लिए पाक और मुकद्दस है क्यूँ की हमारे हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने यहाँ से सात आसमानों की यात्रा के लिए ऊपर उठे थे । जबकि ईसाई और यहूदियों का कहना है की आप के हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से भी सकड़ों वर्ष पहले से ये जगह हमारे लिए पवित्र और पूजनीय क्यूंकी यही वो जगह है जहां हमारे पैगंबर ने अपनी संतान को कुर्बानी के लिए लाए थे। ईसाई और यहूदी ने मुसलमानों से कहा की तुम भी तो पैगंबर अब्राहम और उनके वंशजों को मानते हो तो मेरी बात मान लो इस पर मुसलमानों ने कहा नही ये जगह सिर्फ हमारी है ईसाई और यहूदियों ने कहा नही ये जगह हमारी है। फिर उस जगह के लिए उन यहूदी और मुसलमानों के बीच हिंसक लड़ाई शरू हो गई ।
957 ई० पूर्व मे जेरूसलम के उस पवित्र स्थान पर पैगंबर सोलेमन ने एक मंदिर का निर्माण करवाया। ठीक 30 साल के बाद 987 ई० पूर्व मे बेबीलोन का राजा जेरूसलम पर सैन्य हमला करता है और उस मंदिर को तोड़ देता है। फिर जेरूसलम के यहूदी अपनी जान बचाने के लिए मिस्र भाग जाते है जहां उनपर बेइंतहा जुल्म होता है। यहूदियों के कुल 12 जातियाँ थी जिसमे से 10 जातियाँ पूरी दुनियाँ मे बिखर गई जिनका आज भी कोई आता पता नही है।
अब आते है आगे, फिलिस्टाइन का इतिहास काफी पुराना रहा है यह देश तब से है जब पूरे मिडिल ईस्ट मे कोई इस्लामिक देश नही था इस्लामिक देश तो छोड़िए इस्लाम ही वजूद मे नही था। फिलिस्टाइन का एक राज्य हुआ करता था जिसका नाम था "इजराइल"। ये जगह भगवान के द्वारा पैगंबर अब्राहम के बेटे पैगंबर आइजेक को दिया गया एक वादा था जिसमे उन्होंने उनके वंशजों को अलग से दिया था । इसलिए यहूदी इसे "परोमिस लैन्ड" भी कहते है ।
637 ई० मे मुस्लिम सैन्य टुकड़ी खलीफा हुमर की अगुआई मे फिलिस्टाइन मे इजराइल के जेरूसलम पहुँचती है । और उसकी घेराबंदी करती है करीब 6 महीने की गेरबंदी के बाद जेरूसलम हार स्वीकार कर लेती है और इतिहास मे पहली बार मुस्लिम जेरूसलम मे दाखिल होती है । फिर खलीफा हुमर पूरे जेरूसलम को देखते है और उस मंदिर की जगह की सफाई करवा कर करीब 1500 वर्षों के बाद वहाँ पर एक लकड़ी की मस्जिद बनवाते है । जो बाद मे चल कर "अल अक्स" कहलाता है जिसका विवाद आज भी चल रहा है।
फिर यहाँ पर यहूदियों के साथ बहुत अत्याचार होने लगा यहूदी अपने और अपने परिवार की जान बचाने के लिए पूरी दुनिया मे भटकने लगे। अत्याचार के बावजूद भी काफी यहूदी जेरूसलम मे ही रह रहे होते है। फिर मिस्र मे एक बादशाह आता है उसका नाम सलादीन था बाद मे दुनिया उसे "सलादीन द ग्रेट" के नाम से भी जानतीं है। ये एक बहुत ही उदारवादी राजा थे इन्होंने यहूदियों को अपने यहाँ आश्रय दिया। तब तक मिडिल ईस्ट से सारे ईसाई यूरोप के लिए जा चुके थे। लेकिन उनको ये लगता है की हमारी सबसे पवित्र जगह पर मुस्लिम ने कब्जा कर लिया है और हमे इसे वापस लेना होगा । यहाँ से ईसाइयों ने "करुसेट" की शुरुआत कर दी । उनको इस बात से काफी गुस्सा था की मजबूरी मे ही सही पर यहूदियों ने मुस्लिम के आगेअपने हथियार क्यूँ डाल दिए।
करुसेट की शुरुआत होती है सन 1095 ई० मे "पॉप अर्बन" की अगुवाई मे। जिसमे लाखों लाख की तादाद मे सैनिक, आम जनता, किसान इत्यादि हथियार लेकर कूँच करते है जेरूसलम की तरफ। ये करुसेट काफी लंबे दौर तक चलता है जिसमे यहूदियों को ईसाइयों के द्वारा बहुत बुरी तरीके से मारा जाता है जिसमे सारे यहूदी जेरूसलम छोड़ दुनिया की भीड़ मे खुद को छुपा लेते है। लेकिन उन्हे अंदाजा नही था की जहां वो एक अत्याचार से बचाकर भाग रहे थे एक शरणार्थी के तौर पर उनपर पूरी दुनिया मे अत्याचार हुआ। उसी दौर मे कुछ यहूदी हमारे देश भारत मे भी आते है। यहूदियों को एक शरणार्थी के तौर पर नही बल्कि मेहमान की तरह से भारत मे उनके साथ व्यवहार हुआ।
फिर दौर आता है "हिटलर" का इतिहास के पन्नों मे दर्ज है की यहूदियों को सबसे ज्यादा नाजियों ने मारा करीब 60 लाख यहूदियों की हत्या नाजियों के हाथों हुई । सन 1917 मे विश्व युद्ध के बाद एक प्रस्ताव आता है की दुनिया मे जीतने भी यहूदी है वो चाहे तो अपने घर जेरूसलम आ सकते है। इसके बाद बड़ी मात्र मे यहूदी आने को तैयार भी हो जाते है मगर उसी वक्त दुशरे विश्व युद्ध का दौर शरू हो जाता है। दुशरे विश्व युद्ध के बाद भी उस प्रस्ताव को बरकरार रखा जाता है की यहूदियों को वापस जेरूसलम आ जाना चाहिए। फिर 1947 के बाद जब यूनाइटेड नेशन जब बनती है और वो ये पक्के तौर पर निर्णय करती है की यहूदियों को उनका घर मिलना चाहिए। और वो घर और कहीं नही बल्कि वहीं होगा जहां पर उनका परोमिस लैन्ड है मतलब फिलिस्टाइन का राज्य इजराइल और उसमे जेरूसलम। यूनाइटेड नेशन के इस प्रस्ताव के बाद एक फिलिस्टाइन का एक बड़ा हिस्सा यहूदियों को दिया गया और एक छोटा हिस्सा फिलिस्टाइन के लोगों को उनकी जिंदगी बसर करने के लिए दिया गया। इस प्रस्ताव पर यहूदी तो मान जाते है लेकिन फिलिस्टाइन के लोग नही मानते और 1947 मे ही प्रस्ताव के बाद ही युद्ध शरू हो जाता है। जिसमे इसराइल और ज्यादा जमीन घेरने मे कामयाब हो जाता है । फिर 1956 मे युद्ध होता है जिसको "सनाय वॉर" कहा गया है जिसमे मिस्र का स्विस केनाल को बंद कर दिया जाता है इसमे भी इसराइल और जमीन घेरने मे कामयाब हो जाता है । फिर 1967 मे 6 दिन का जंग होता है जिसमे इसराइल के द्वारा कब्जा कीये जमीन को छुराने के लिए अरब देशों के द्वारा हमला किया जाता है जिसमे अरब वर्ल्ड, जोर्डन, सीरिया, फिलिस्टाइन, मिस्र मिलकर एक साथ लड़ते है जिसमे 2 दिन इसराइल हारता है और पलट कर और ताकत से हमला करता है जिसमे फिलिस्टाइन का और ज्यादा जमीन घेरने मे कामयाब हो जाता है । इसके बाद पि० एल० ओ० (फिलिस्टाइन लिबरेशन काउन्सल) का गठन होता है जिसमे हमास, अलफतेह ग्रुप आता है । हमास उनसे भी बगावत कर लेता है। अलफतेह पि० एल० ओ० के अधीन राहत है जो की अभी फिलिस्टाइन का सरकार चला रहा है । इनका कोई भी विवाद इजराइल के साथ नही होता है । जबकि सारा विवाद हमास के साथ ही होता है । हमास को फिलिस्टाइन लिबरेशन काउन्सल और यूनिटेड नेशन मे से किसी से भी स्वीकृति नही मिली हुई है । इसलिए इसे हम पक्के तौर पर एक आतंकवादी संगठन बोल सकते है ।
इसके साथ मैं अपना आज का ब्लॉग यहीं पर समाप्त करता हूँ । फिर मिलते है अपने अगले ब्लॉग मे तब तक के लिए ।
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