दिल्ली के इतिहास की अब तक की सबसे बड़ी चोरी
(भाग -02)
अपनी मूर्खता से पकड़ा गया 25 करोड़ का चोर । दिल्ली के 25 करोड़ की चोरी का खुलासा । सुपर चोर लोकेश की पूरी कहानी । तुक्के में पकड़ा गया 25 करोड़ का चोर
"जिस प्रकार से इस चोरी को अंजाम दिया गया ये काम किसी एक चोर का नही बल्कि 6-7 चोरों ने मिलकर अंजाम दिया होगा ।" ऐसी सोच हर उस इंसान की बनी जिसने भी इस चोरी को देखा । लेकिन मेरे साथ - साथ वो सभी लोग गलत साबित हुए जिन्होंने भी इस चोरी के बारे मे ऐसा सोच रहे थे। क्यों की जब इस चोरी का खुलासा तो पुलिश वाले खुद हैरान थे ये जान के की इस चोरी को अकेले ही एक चोर ने अंजाम दिया था। अकेले ही इस पूरी चोरी को प्लान लिया, अकेले ही चोरी के लिए आया और अकेले ही सारे माल के साथ गायब भी हो गया। अमूमन, इस तरह की चोरी को एक अकेला व्यक्ति करने की काभी सोच भी नही सकता लेकिन ऐसा हुआ और जब इसकी पूरी कहानी का पता चल तो पुलिस वालों के पैरों तले जमीन ही खिसक गई ।
आज की ये कहानी है एक ऐसे चोर के बारे मे जिसने भोगल के इलाके मे वहाँ के सबसे बड़े और पुराने गहनों की दुकान मे 25 करोड़ रुपये के सोने, चांदी, हीरे और जवाहरात की चोरी की वो भी अकेले उस चोर का नाम है "लोकेश श्रीवास"।
24 सितंबर की कहानी तो आप लोगों ने पढ़ी ही होगी अगर नही पढ़ी तो लिंकपरक्लिक कर के पढ़ सकते है । इस कहानी की शरुआत होती है 27 सितंबर से, 27 सितंबर को छत्तीसगड़ के दुर्ग मे वहाँ की पुलिस अपने यहाँ हुई कुछ चोरियों की जांच पड़ताल कर रही थी। या यूं कहा जाए की एक अभियान चला रही थी जिसमे मोस्ट वांटेड चोरों की तफतीश और रिकार्ड लिस्ट मे जिन चोरों के नाम थे उनपर कारवाही कर रही थी। ये अभियान दुर्ग पुलिस दिल्ली मे हुई चोरी से बिल्कुल बेखबर अपने यहाँ हुई चोरियों पर चला रही थी । 27 सितंबर को दुर्ग पुलिस के हाथों एक चोर लगा जो की उनके वांटेड लिस्ट मे शामिल था और 2-3 चोरियों के सिलसिले मे उसकी खोज हो रही थी । उस चोर का नाम था "लोकेश राव" इसके नाम से 2-3 चोरियाँ दुर्ग के पुलिस स्टेशन मे दर्ज थीं । उसके साथ मे दुर्ग पुलिस के हाथों 2-3 और चोर भी लगे।
अब दुर्ग पुलिस ने लोकेश राव से उसके नाम से दर्ज चोरियों के बारे मे पूछ - ताछ करने लगी । पहले तो लोकेश राव ने उनके सवालों का गोलमोल स जवाब दिया और टाल मटोल करने लगा तो दुर्ग पुलिस ने भी अपने तेवर दिखाए जिसके बाद लोकेश के मुंह से जो निकला वो हैरान करने वाला था । लोकेश राव ने पुलिस वालों से कहा "क्या साहब आप मेरे पीछे लगे हो, उसको जाके पकड़ो न जो दिल्ली से बड़ा काम करके आया है ।" पुलिस वालों ने उससे पूछा "कौन रे, और क्या काम ऐसा कौन सा तीर मारके आया है।" इसपर लोकेश राव बोला "साहब आपको नही पता अभी जो दिल्ली मे जो 25 करोड़ का जो चोरी हुआ है वही चोरी जिसके चोर को दिल्ली पुलिस ढूंढ रही है वो अपने यहाँ आकार छुपा हुआ है और वो अपना ही आदमी है।" इसपर पुलिस वालों ने पूछा "कौन है वो ?" लोकेश राव ने कहा "साहब उसका नाम है लोकेश श्रीवास।"
इस बात का पता चलते ही दुर्ग पुलिस के एक सब-इन्स्पेक्टर ने जो की दिल्ली के एक सब-इन्स्पेक्टर को जानता था उसको फोन लगता है । दुर्ग पुलिस "नमस्ते सर मैं दुर्ग पुलिस स्टेशन से सब-इन्स्पेक्टर बोल रहा हूँ। आपके यहाँ जो 25 करोड़ की चोरी हुई थी उसके बारे मे कुछ बात करनी थी।" दिल्ली पुलिस "हाँ बताइए , पिछले 03 दिनों से सोया नही हूँ इसके चक्कर मे कोई सुराग भी अभी तक नही मिला है।" तो दुर्ग पुलिस ने वहाँ की सारी बात उनको बताई और कहा की "शायद आप का चोर यही दुर्ग मे है। उसका नाम लोकेस श्रीवास है लेकिन हमारे पास अभी उसकी कोई तस्वीर नही है। तो तुम देखो इसमे क्या करना है बाँकी की जानकारी मैं पता करके बताता हूँ।" इतना सुनते ही दिल्ली सब-इन्स्पेक्टर के कान खड़े हो गए और वो भागा - भागा अपने सीनियर के पास गया और उनको सारी बात बात दी। इतना सुनते ही दिल्ली पुलिस हरकत मे आयी । अब तक तो दिल्ली पुलिस बस अंधेरे मे तीर चला रही थी अब अचानक से एक नाम सामने आता है "लोकेश श्रीवास" नाम के अलावा दिल्ली पुलिस के पास और कुछ भी नही था।
अब दिल्ली पुलिस की कुछ टीम बनी जो उस लोकेस श्रीवास को ढूँढने मे लग गई। उन्होंने अपने पुराने केस मे लोकेश श्रीवास को ढूँढने का प्रयाश किया परंतु असफल रहे फिर उन्हे कुछ समझ नही आ रहा था तो गूगल मे लोकेश श्रीवास को ढूँढने लगे। कभी कभी गूगल बाबा आप को निराश नही करते और गूगल बाबा ने भी दिल्ली पुलिस को निराश नही किया उसमे एक लोकेश श्रीवास के नाम की तस्वीर मिली जिसमे वो पुलिस के हथकड़ी मे था और जिस चोरी के सिलसिले मे वो पकड़ा गया था वो भी किसी ज्वेलरी का ही दुकान था वो भी दिल्ली मे ही। इसके बाद दिल्ली पुलिस ने अपनी तफतीश को आगे बढ़ाते हुए 24 सितंबर की रात की उस ज्वेलर के दुकान के आस -पास के सीसी टीवी से एक संदिग्ध व्यति का फुटेज मिला था जिसने सफेद शर्ट पहना था तथा उसके पीठ पर एक पिट्ठू बैग था।
सीसीटीवी से मिले तस्वीर का मिलान गूगल से मिले तस्वीर से किया गया। चूंकि सीसीटीवी की तस्वीर साफ नही थी परंतु उससे उस व्यक्ति के चेहरे की बनावट, हुलिया इत्यादि के मिलान से ये साफ हो गया था की ये वही लोकेश श्रीवास है जिसकी तलाश दिल्ली पुलिस को थी। इसके बाद दिल्ली पुलिस ने अपनी एक टीम को दुर्ग के लिए रवाना कर दिया और अपनी दुशरी टीम से दुर्ग पुलिस से उस लोकेश श्रीवास का फोन न० या उसके बारे मे और जानकारी निकालने के लिए लगा दिया ।
दुर्ग पुलिस और भिलाई पुलिस की मदद से दिल्ली पुलिस के हाथ लोकेश श्रीवास का मोबाईल न० लगा । जिसको उन्होंने सर्विलांस पर लगा तो पता चला कि, दिया गया मोबाईल न० का नेटवर्क 24 सितंबर की रात दिल्ली के भोगल मे उसी ज्वेलरी के दुकान के इर्द -गिर्द का ही था। फोन न० को और खंगाला गया तो पता चला के 24 सितंबर की आधी रात से 25 सितंबर की सुबह 8 बजकर 39 मिनट तक मोबाईल ऑफ राहत है फिर 25 सितंबर की सुबह 8 बजकर 40 मिनट पर दिल्ली के कश्मीरी गेट बस स्टैन्ड (ISBT) पर फोन ऑन होता है । फिर दिल्ली पोलिस कश्मीरी गेट बस स्टैन्ड मे लगे सीसीटीवी को खंगालती है तो उसमे लोकेश श्रीवास टिकट काउन्टर पर पीठ के बैग के साथ एक हाथ मे बैग के साथ दिखता है। अब इससे दिल्ली पुलिस को पूरी तरह से यकीन हो गया की ये वही लोकेश श्रीवास जिसके तलाश वो कर रही है।
अब दुर्ग पुलिस और भिलाई पुलिस को भी जब इस बात का पता चल तो वो भी हरकत मे आई और लोकेश राव के जरिए लोकेश श्रीवास का के ठिकाने का पता लगाने लगी तो पता चला की लोकेश श्रीवास ने भिलाई के एक मोहल्ले मे किराये का एक घर ले रखा है तथा वो अभी वहीं पर है और अभी 1 दिन पहले ही वो भिलाई वापस आया है ।
पुलिस उसके किराये के घर पर गई लेकिन वो उस वक्त कमरे मे नही था मगर उसका एक साथी उस कमरे मे ही था जिसको पुलिस ने अपने हिरासत मे लिया फिर कमरे की जांच करने लगी तो उन्हे वहाँ पर चादर मे, तकिये के कवर मे, गद्दे मे इत्यादि मे सोने के जेवर, हीरे के जेवर, चांदी के जेवर, बहुमूल्य रत्नों से जड़े जेवर मिले जिससे ये तय हो गया की ये वही जेवर है जो भोगल के उस दुकान से चोरी हुए थे। पुलिस ने सारा माल जब्त कर लिया साथ मे करीब 11 लाख रुपये भी बरामद हुए । उसके साथी से जब पुलिस ने पूछा तो उसने कहा की "मुझे इसके बारे मे कुछ नही मालूम बस वो आया और सारा समान रख अभी थोड़ी देर पहले कहीं गया है। बस आता ही होगा और वो यही वापस आएगा।" पुलिस वहीं उसका इंतजार करने लगी।
27 सितंबर की रात तक दिल्ली पुलिस भी भिलाई पहुँच चुकी थी । 27 की देर रात तक लोकेश श्रीवास नही लौटा। अगली सुबह पुलिस को खबर मिली की लोकेश अपने भिलाई के कमरे पर आने वाला है तो दुर्ग पुलिस, भिलाई पुलिस और दिल्ली पुलिस तीनों ने मिलकर वहाँ पर सदी वर्दी मे अपने आदमियों को लगा दिया । इस बात से बेखबर लोकेश जैसे ही अपने कमरे मे आया उसे चारों ओर से धर दबोचा गया । फिर उसे ठाणे लाया गया । चुकी उसके घर से माल बरामद किया जा चुका था तो उसके पास अपने बचाव मे कहने को कुछ भी नही था और उसने अपना जुर्म काबुल कर लिया। फिर पुलिस ने उससे उनके साथियों के बारे मे बताने को कहा जिससे उनको जल्दी से पाकर जा सके और उनसे भी माल बरामद किया जा सके। फिर असल मे माल कितना था इसकी जानकारी दुकान के मालिक को ही थी इसलिए उनको नहीं भिलाई बुलाया गया ।
जब लोकेश ने सबकुछ बताना शरू किया तो पहले पुलिस वालों को यकीन ही नही हुआ और वो बार बार उससे अपने साथियों का नाम बताने पर जोर देते रहे । फिर जब लोकेश ने पूरी प्लानिंग बताई और उसके पुराने रिकार्ड को खंगाला गया तो पता चला की ये ऐसा चोर है जो कभी किसी गैंग के साथ मिल कर चोरी ही नहीं करता था । हमेशा अकेले ही चोरी करता था ताकि ये पकड़ा न जाए । फिर पुलिस ने उससे पूरी कहानी कहने को कहा तो उसने अपनी कहानी शरू कि ।
मैं कभी भी उस शहर मे चोरी नही करता जहां मैं रहता हूँ चूंकि वहाँ पर मैं आसानी से पकड़ मे आ सकता हूँ । इसलिए मैं हमेशा दुशरे शहरों मे चोरी करता हूँ । जिससे मैं किसी के नजर मे न आऊँ । दुशरे शहरों मे चोरी करने के फायदे ये है की चोरी करो और अपने शहर वापस आ जाओ, वहाँ की पुलिस हमेशा अपने आस पास के चोरों पर ही निगाह रखती है और उसी मे उलझ के रह जाती है। इस पर पुलिस ने पूछा के "तुम भिलाई के रहने वाले और चोरी यहाँ भोगल के उमराव सिंह ज्वेलरी की दुकान मे कैसे ? इसपर लोकेश ने जवाब दिया की "वो चोरी करने के लिए किसी घर या आम दुकान को अपना टारगेट नही बनाता वो बस ज्वेलरी की दुकानों को ही अपना टारगेट बनाता है।" उसने बात की "यहाँ चोरी करने से पहले वो दिल्ली के की इलाकों मे घूम हर तरह के ज्वेलरी की दुकानों को देखा लेकिन जब एक दिन वो भटकते -भटकते भोगल मे उमराव सिंह ज्वेलरी की दुकान को देखा तो उसे ये दुकान चोरी करने के लिए सबसे आसान टारगेट लगा और वजह थी उस दुकान की बनावट क्यूँकी दुकान के दोनों तरफ सटी हुई ऊंची -ऊंची इमरते थी। फिर उसने दुकान के बगल के इमारत के छत पर जाने के लिए उसकी सीढ़ी का इस्तेमाल किया और वो बिना किसी रोक टोक के उस इमारत के छत तक पहुँच गया। फिर उसने उस सीढ़ी के गेट के खुले रहने का समय पता किया तो पता चला की सीढ़ी का गेट कभी बंद नही होता चूंकि उसमे बहुत सारे परिवार रहते है और उनके आने जाने का कोई वक्त नही होता इसलिए। फिर लोकेश ने उस ज्वेलरी के दुकान के बारे मे जानकारी इकट्ठी की तो पता चल के दुकान सोमवार को बंद रहती है ।
उसने वहाँ की पूरी जानकारी इकट्ठी की छोटी से छोटी जानकारी भी इकट्ठी की यहाँ तक के उसके रास्ते मे कुल कितने सीसीटीवी आएंगे इत्यादि बातें भी । कुछ दिनों तक वहाँ रहने के बाद वो भिलाई लौट गया । भिलाई पहुँच कर उसने वहाँ की हर एक चीज को प्लान किया। फिर 24 सितंबर को दिन मे बस से लोकेश भिलाई से दिल्ली पहुंचता है। दिन भर वो इधर उधर घूम कर अपना समय व्यतीत करता है । फिर शाम तक वो उस मार्केट मे आके सीढ़ी का मुवायना करता है और तसल्ली होने के पश्चात मार्केट का चक्कर लगाना शरू कर देता है। मार्केट के बंद होने के बाद करीब रात के 11 बजे जब मार्केट शांत हो गया तो वह आसानी से उस बगल की इमारत के सीढ़ी के जरिए उस दुकान के ऊपर के मंजिल पर पहुँच जाता है। फिर सबसे पहले ऊपर के मंजिल के दरवाजे का ताला तोड़ता है फिर अंदर जा कर दरवाजे को अंदर से बंद कर लेता है । फिर सीढ़ी से एक एक मंजिल का मूवायना करता है । उसे इस बात का बहाली भांति जानकारी थी के सबसे नीचे के फ्लोर पर एक दीवार है जो की सीमेंटेड है और उसके अंदर के 3 दीवार लोहे की है फिर उसने सीमेंट के उस दीवार मे डेढ़ फिट का एक छेद किया और उसके जरिए वो उसके अंदर दाखिल हो जाता है । ये सब करते करते उसको करीब 1 घंटा लग गया । वो बड़े ही तसल्ली से भीतर लॉकर को गैस कटर से काटने की तैयारी कर रहा था । फिर एक एक कर वो कुल 32 लॉकर को खोलता है और उसमे से सारे जेवर वो निकाल लेता है। शोकेस के भी सारे जेवर को वो निकाल लेता है और अपने पिट्ठू बैग के भीतर से एक हाथ वाला बैग निकालता है और सारे जेवर, हीरे जवाहरात को वो बैग मे डाल लेता है । चूंकि 32 लॉकर को तोड़ना कोई खेल नही था उसमे एक अकेले व्यक्ति को समय तो लगना ही था। मगर उसको ये अच्छे से पता होता है की सोमवार को दुकान पर कोई नही आएगा इसलिए वो बिना किसी हरबराहट के खाना, पानी करते हुए लॉकर को काट रहा था यही नही उसने बताया की जब वो थक गया तो वही लॉकर मे भी थोड़ी देर सो भी गया था । सोमवार के शाम 7 बजे वो निकालने के लिए तैयार होता है चुकीं दिल्ली मे शाम 6 के बाद अंधेरा हो जाता है तो उसने वहाँ से निकालने के लिए समय उचित समझा। फिर वो जैसे जैसे अंदर की की तरफ आया था ठीक वैसे ही वो दुकान के छत पर पहुँचा। पहले छत से मुवायना किया की कही आस पास कोई है तो नही फिर उस बगल की इमारत को भी देखा वो भी खाली था फिर उसने उतारने का फैसला लिया वो ये जानता था की एक बार अगर वो बगल के इमारत की सीढ़ी तक पहुँच गया फिर उसको रोकने वाला कोई नही है । वो बगल की इमारत पर आसानी से उतार जाता है । फिर सीढ़ी से नीचे की ओर चला जाता फिर अपनी पीठ पर उस जेवर के बैग को उठाए हुए वह से चला जाता है । उसने पहले से ही अपने वापसी के बस का पता कर रखा था । फिर वह 26 सितंबर की सुबह 8.40 मिनट पर कश्मीरी गेट से सरकारी बस का एक टिकट लिया और एक आम मुशाफ़िर की तरह भिलाई के लिए निकाल पड़ा । जब तक दुकान के मालिक या पुलिस को इस चोरी के बारे मे पता चलता वो उनकी पहुँच से बहुत दूर जा चुका था।
पुलिस के द्वारा बरामद किये गए माल की कीमत करे करीब 23-24 करोड़ के आस पास की थी । असल मे उन जेवरों मे से क्या क्या घाटा इसका पता तो उमराव सिंह जी को ही हो सकता है। खैर इसके साथ दिल्ली की आज तक के सबसे बड़ी चोरी की पूरी कहानी यही समाप्त होती है । अब मिलते है अपने अगले ब्लॉग मे ।
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