सच और भ्रम की चौराहे पर
एक ऐसी घटना जो आप को ये सोचने पर मजबूर कर दे की
"क्या वो सच मे हुआ या मेरा भ्रम था"
कभी - कभी जिंदगी आपको कुछ ऐसा दिखती है जिसको आप देखते हुए भी न देखने जैसा महसुश करते है और फिर ये सोचने लगते है कि जो हुआ या जो कुछ भी आप ने देखा क्या "वो सच था या फिर भ्रम मात्र था।" नमस्ते दोस्तों आज मैं जो घटना अपनी जिंदगी की आप लोगों के सामने रखने जा रहा हूँ उसे आज तक मैं खुद समझ नहीं पाया। वो मेरी जिंदगी की एक ऐसी सच्चाई है जिसे लाख मैं भूलना चाहूँ पर कभी भूल नहीं पाया, इसके बारे मे सिर्फ मेरे एक दोस्त प्रदीप जानता था। जो की आज - अब हमारे बीच मौजूद नहीं है। आज उस कहानी को मैं आप लोगों को बात रहा हूँ।
मैं जॉब के साथ साथ मैं अपना प्राइवेट ऑडिट और बुक कीपिंग का काम भी करता था। ऑडिट के काम के वजह से मैं काफी बार मुंबई से बाहर जैसे नासिक, पुणे, अहमदाबाद, इंदौर, दिल्ली, त्रिवेंद्रम आदि जगहों पर जाने का मौका भी मिला। मुझे ये काम इस लिए भी पसंद थी क्यूंकी इसी के कारण मैं कम से कम घूमने के लिए निकाल भी पता था वरना जॉब मे कही जाने का प्लान बनता तो ज्यादा से ज्यादा गाँव जाने का।
ये घटना है अक्टूबर 2016 की उस वक्त उस समय मैं त्रिवेंद्रम से त्रिवेंद्रम स्कॉटिस स्कूल का ऑडिट कर के वापस बृहस्पतिवार को मुंबई आ गया था। मेरा रूम पूरी तरह से बिखर पड़ा था। मैं भी करीब 10 दिनों से मुंबई से बाहर था और मेरा चड्डी-बड्डी मेरा रूम पार्टनर प्रदीप अपने किसी रिस्तेदार की शादी से सोमवार को चंद्रपूरा से लौट के आने वाला था। मेरा अभी कोई नया ऑडिट पर जाने का प्लान नहीं था, मैं लगातार सफर करते करते बहुत थक गया था और एक दिन खुद के लिए और रूम की सफाई के लिए देना चाहता था, लेकीन संडे को एक अर्जेंट नासिक के एक वाटर पयुरिफायर प्लांट के गोडाउन का टैली सॉफ्टवेयर को अपग्रेड कर स्टॉक बनाना था चूंकि काम जरूरी था उसे बाद ही मैं अपना हाफ यरली बुक क्लोज कर सकता था इसलिए मुझे इस संडे को जाना बहुत जरूरी था।
संडे सुबह 6.00 बजे गाड़ी मेरे घर नीचे आ गई और मैं 6.15 के आस -पास घर से नाशिक के लिए निकाल पड़ा । मैं तकरीबन 08:45 के तक हम आटगांव के एक ढाबे पर रुके और वहाँ पर फ्रेश होने के लिए पानी से मुह धोया फिर चाय और वडा पाव खाया फिर वहाँ से हम निकले। मेरे कार के ड्राइवर का नाम सचिन पाटील था वो बाद ही जिंदादिल लड़का था। बात ही बात मे पता चल के वो कसारा का ही रहने वाला था । वो मुझे अपने बारे मे बात रहा था, मैं भी मजे से सुन रहा था । बात करते-करते कब हम फैक्ट्री पहुँच गए पता ही नहीं चला।
फैक्ट्री शहर से काफी दूर था और पहाड़ी इलाके मे अंदर थोड़ा सुनसान जगह पर था। असल मे महाराष्ट्र सरकार "एम आई डी सी" (Maharashtra Industrial Devlopment Corporation) जैसे इंडस्ट्रियल इलाकों को शहर के बाहर ही बनाता था जिससे शहर मे प्रदूषण और ट्रेफिक से जितना हो सके दूर रखा जा सके।
हैलो, हाउ आर यू ... कहते हुए अपना हाथ मेरी ओर बढ़ाने वाला इंसान उस कंपनी का CEO मिस्टर प्रधान थे। मैंने उनसे हाथ मिला कर जवाब दिया "फाइन सर, थैंक्स। हाऊ अबाउट यू "। उन्होंने जवाब दिया "सुपर्ब "। मैंने उनसे कहा "आज फैक्ट्री मे काम हो रहा है क्या" उन्होंने कहा "नो आज काम बंद रखा है ये सब आप को मदद करने के लिए है, मेरी एक मीटिंग है इस लिए मैं थोड़ा व्यस्त रहूँगा आप को कुछ भी जरूरत हो तो आप कार्तिक से बोल दीजिएगा ये आप को हमारे सारे सिस्टम के बारे मे आप को समझा देगा।" मैंने उनको धन्यवाद दे कार्तिक के साथ फैक्ट्री का भ्रमण करने चल पड़ा । कार्तिक मुझे पूरा प्रोडकसन प्रोसेस बताता गया और मैं देखने के साथ साथ नोट भी करता गया । ये करते करते मुझे दोपहर के 03:00 बज गए । फिर उन्होंने मेरे लिए लंच मंगाया, मैंने लंच कर के फिर अपने ऑडिट प्रोसेस का प्लान बनाने लगा। फिर टैली को देखने लगा टैली अपने ओल्ड वर्ज़न मे था और उसमे प्रोडकसन प्रोसेस, पेयरोल के साथ साथ टैक्स ऑटो कैल्क्युलैशन का प्रोसेस भी अपडेट करना था। इन सब का एक रिपोर्ट तैयार कर मैंने CEO को दे दिया साथ अपना कोटेसन भी दे दिया। थोड़ी देर बाद मुझे वर्क ऑर्डर दे दिया गया जिसका काम खतम होने का समय 7 दिन का था मैंने भी वर्क ऑर्डर एक्सेप्ट कर लिया । फिर मैने टैली अपडेसन से शुरू करते हुए सारा सिस्टम को रन करके उसका इस्तेमाल करके भी देख लिया सब सटीक रहा ये सब करते - करते मुझे रात के 11:00 बज गए । मैने CEO को फोन कर सारा कुछ बात के मुंबई के लिए निकालने के लिए कहा तो उन्होंने कहा के इस वक्त मत निकालिए सुबह 04:00 - 05:00 बजे निकाल जाइएगा । मैंने उनको समझा - बुझा के वहाँ से मुंबई के लिए निकला।
सचिन को CEO ने मुझे मुंबई छोड़ने के लिए भेजा, मुझे अब भूख भी लगने को आई लेकीन मुझे ढाबे का कहना बहुत पसंद था सो मैंने खुद को समझते हुए आगे कहना खाने का सोचा। करीब 12:00 बजे मैं फैक्ट्री से निकला। MIDC एकदम से सुनसान और वीरान लग रहा था। चारों तरफ गहना पेड़ होने की वजह से थोड़ा डरावना भी लग रहा था । सचिन बिल्कुल बिंदास तरीके से गाड़ी भागाने लगा। मैंने उससे एसी ऑफ कर विंडो को खोल देने को कहा। गाड़ी मे हमने पुराने गाने FM पर बाजा रहे थे। हम उस डरावने माहौल का भी मजा ले रहे थे अपने ही अंदाज मे।
तकरीबन रात के 01:30 हो रहा होगा हम कसारा घाटी मे अब घुसने जा रहे थे। आज दिन भर मे पहली बार मैंने सचिन के चेहरे पर गंभीरता देखी। वो बड़े ही ध्यान से गाड़ी चल रहा था। उसके चेहरे पर डर साफ तौर पर देखा जा सकता था मैं उसको बार बार पूछ रहा था के वो इतना परेशान क्यूँ लग रहा है कोई दिक्कत है या फिर उसकी तबीयत तो ठीक है न। वो मुझे देखता पर कुछ भी नहीं बोलता। वो सिर्फ बड़े ही ध्यान से रोड को देख रहा था ।
मैंने सोचा के होगा कुछ उसका पर्सनल इसलिए मैंने उससे ज्यादा नहीं पूछा फिर शीट को नीचे कर मैं सोने की कोशिश करने लगा। गाड़ी अभी कसारा के जंगलों और खतरनाक सुनसान घाटी से गुजर रही थी। उस वक्त हमारी गाड़ी कुछ 80-90 की स्पीड मे होगी मेरी आँख थोड़ी लगी ही थी के सचिन ने बड़े जोर से ब्रेक मारा मैं उछाल के आगे की तरफ आया मैंने सचिन को जोर से चिल्लाया "पागल हो गया है क्या दीमग तो ठीक है आँख लग गई थी क्या जो ऐसे ब्रेक मारा" वो कुछ नहीं बोला बस आगे की तरफ बड़े ध्यान से देख रहा था उसने तुरंत गाड़ी के कांच को बंद कर इन्टर लॉक लगा दिया । मैंने सामने देखा तो एक बाघ का छोटा स बच्चा बीच रोड पर आकर सो गया। मैंने सचिन को कहा "भाई गाड़ी का हॉर्न बजाओ वो भाग जाएगा" उसने मन किया बोला "नहीं सर अगर हॉर्न बजाय तो इसके साथ अगर और हुए तो वो भी आवाज सुन रोड पर आ जाएगा।" मैंने बोला "फिर क्या किया जाए" सचिन बोला "सर मैं साइड से निकालने की कोशिश करता हूँ बस वो उठे नहीं" मैंने बोला "तो क्या हुआ हम गाड़ी मे है और गाड़ी लॉक भी है वो हमला नहीं कर सकता है न" उसने कहा के "बात वो नहीं है दरअसल अगर वो कही गाड़ी के नीचे आ गया तो जब भी ये गाड़ी इधर से गुजरेगी इसकी माँ दूर से इसकी खुशबू को पहचान कर हमला करेगी ।" पहले तो मैंने उसका मज़ाक उड़ाया फिर चुप चाप वो जो कर रहा था उसको करने दिया । उसने धीरे - धीरे कार को बगल से निकाल लिया और मुंबई की राह पर फिर आगे बढ़ाने लगे । कसारा घाटी पार करने के बाद उसने सुकून की सांस ली ।
मेरी भूख भी अब शायद काही गायब हो गई थी । हम खर्डी लगभग पहुंचे होंगे की हमारी गाड़ी का टायर पंचर हो गया। मैं सोच रहा था के पता नहीं आज किसका मुँह देखके उठा था यार एक तो कुछ खाया नहीं दुसरा कोई न कोई मुशीबत आती ही जा रही है, कुछ यूं लग रहा था जैसे कोई हमे रोकने की कोशिश कर रहा हो। आस - पास कोई दुकान या ढाबा जैसा कुछ नहीं दिख रहा था के पंचर भी दिखा दिया जाए और कुछ पेट पूजा भी हो जाए । मैंने सचिन को बोला "भाई स्टेपनी है गाड़ी मे" उसने हामी मे सर हिलाया मैंने सुकून की सांस ली। लेकीन थोड़ी देर तक देखा तो वो गाड़ी के नीचे ही नहीं उतार रहा था । मैंने बोला "यार जब स्टेपनी है तो बादलों भी देख क्या रहे हो, कल मुझे ऑफिस जाना है थोड़ा आराम नहीं करूंगा तो मेरी तबीयत भी खराब हो जाएगी ।" उसने कहा "सर ऐसे ही थोड़ी दूर तक ले चलता हूँ किसी दुकान पर टायर बदल देंगे । मैंने बोला ठीक है । जैसे तैसे वो गाड़ी को लेकर एक एक छोटे से झोंपड़े के पास लेकर आया देखने मे पूरा भंगार था लेकीन वहाँ एक बूढ़ा और बूढ़ी जागे मिले । हमने वही गाड़ी रोकी सचिन कार की स्टेपनी बदलने लगा मैं उस बूढ़े - बूढ़ी के पास गया ओर पूछा "दादू चाय मिलेगी क्या" वो मेरी ओर देख कर बोले "हाँ बेटा मिलेगी न" मैंने कहा "दो चाय बना दो न और बिस्किट है तो दो पैकेट दे दो। " उन्होंने मुझे स्नैक्स बिस्कुट दिया फिर बूढ़ी दादी चाय बनाने लगी ।
बूढ़ा बोला "बेटा तुम इतनी रात गए कहाँ से आ रहे हो"। मैंने कहा "दादू नासिक से अपना ऑफिस का काम कर के मुंबई लौट रहा हूँ ।" मैंने उनसे पूछा "दादू आप इतनी रात गए सोये नहीं और इस सुनसान जगह पर क्या कर रहे है वो भी अकेले " उन्होंने हस्ते हुए कहा "अब हमारी उम्र हो चुकी है इसलिए नींद नहीं काम आती है और ये मेरे बेटे की दुकान है हम दोनों यहाँ उसी का इंतजार कर रहे थे लेकीन काफी रात हो गई हो सकता है वो सो गया होगा इसलिए हम आज यही रह गए ।" तब तक मे बूढ़ी दादी चाय ले कर आ गई मैंने चाय पी सचिन को आवाज दी मगर वो नहीं आया मैंने उसकी चाय भी पी ली । लेकीन भूख जोर की लगी थी उसका कोई इंतजाम नहीं हो पाया था ।
इतने मे बूढ़ी दादी बोली बेटा खाना खाओगे मैंने मन कर दिया । सोच इनका खाना पता नहीं कैसा होगा और सुरक्षित भी होगा या नहीं लेकीन बूढ़ी दादी समझ गई मैं क्यूँ संकोच कर रहा था। उन्होंने कहा "जो ठीक लगे पैसे दे देना खाना मैंने बनाया है अपने बेटे के लिए लाई थी सो वो तो है नहीं इसलिए तुमको पूछ लिया। पता नहीं क्यूँ मैं खुद को रोक नहीं पाया और खाना खाने बैठ गया । खाने मे चपाती, बटाटा की फ्राइ की हुई सब्जी, और नारियल मिर्च की सुखी चटनी मैंने खाना खा लिया जबरदस्त खाना था मन पूर्णतः तृप्त हो गया था मैं जब हाथ धो के आया तो उनको मैंने 200 रुपये दिए फिर मैं वहाँ से कार के पास आ गया । सचिन टायर बदल चुका था और गाड़ी के दूसरे टायर को चेक कर रहा था । मैंने उसको पूरी बात बताई ओर उसको बोला तुम भी चाय पी लो इसी बहाने उन गरीब को दो पैसे और मिल जाएगा । हम दोनों उस ओर गए लेकीन फिर जो मैंने देखा मेरे रौंगटे खड़े कर देने वाला था।
वहाँ खंडहर के अलावा और कुछ नहीं था। मैं सर से पैर तक कांप गया । सचिन को बोला "भाग सचिन वरना हम घर नहीं जा पाएंगे " हम दोनों भागते हुए कार मे बैठे और निकाल गए । जब तक हम कल्याण नहीं पहुंचे हम कहीं न रुके "नो सु सु .. एण्ड नो पू पू " सचिन ने जबरदस्त तरीके से गाड़ी भगाई । कल्याण के बाद मैं सोच मे पड गया के हुआ क्या आखिर कार मेरे साथ मुझे कुछ भी समझ नहीं आ रही थी । मैं अपना चेहरा पोंछने के लिए जब अपनी हथेली को नाक के पास ले गया तो खाने की खुशबू अभी भी आ रही थी । लेकीन सोचने वाली बात ये थी की जब वहाँ कुछ था ही नहीं तो मैंने चाय और खाना खाया कहाँ और अगर ये मेरा भ्रम था तो मेरे हाथों से खाने की खुशबू कैसी थी ।
मैं आज भी जब कहीं अकेले होता हूँ तो उन दोनों बूढे दादू और बूढ़ी दादी का चेहरा याद करने की कोशिश करता हूँ पर मुझे याद ही नहीं आता के वो दिखने मे कैसे थे । खैर ये बात मैंने प्रदीप को बताई और उसको उस जगह पर भी ले कर गया लेकीन दिन के उजाले मे वह शिवाय एक टूटे झोंपड़े के और कुछ नहीं था । ...
नमस्कार ... 🙏